Wednesday, May 19, 2010

चाँदनी


















बाल बिखराए हुए, चाँद का आइना लिए

झील में पाँव हिलाती रही गोरी लड़की

नीले पर्वत की तलहटी के अकेलेपन में

डुबकियाँ लेके नहाती रही गोरी लड़की


कारवां चल दिया मैदान के तम्बू उखड़े

साँझ औझल हुई सूरज की लुकाटी पकड़े

अलविदा कहते हुए आँखों में आँसू भर कर

शाख पीपल की झुकाती रही गोरी लड़की



पीले मुरझाए जटाजूटों को छितराए हुए

गाँव के बूढ़े नजूमी सा लबादा ओढ़े

पेड़ बरगद का खड़ा उसकी हथेली पकड़े

रातभर हाथ दिखाती रही गोरी लड़की



कोई भी नाव नहीं कोई शिकारा भी नहीं

रातरानी से महकती हुई धारा भी नहीं

अपने चाँदी से चमकते हुए नाखूनों से

साज लहरों का बजाती रही गोरी लड़की


मुस्कुराता हुआ बेफिक्र सा अल्हड़ बाँका

पेड़ के पीछे से इक छोकरा बादल झाँका

शर्म से लाल हुए अपने धुले चेहरे को

दोनों हाथों से छिपाती रही गोरी लड़की।